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यौवन का पागलपन -माखन लाल चतुर्वेदी हम कहते हैं बुरा न मानो, यौवन मधुर सुनहली छाया। सपना है, जादू है, छल है ऐसा पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा, मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ ...